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अ॒स्मभ्यं॒ सु वृ॑षण्वसू या॒तं व॒र्तिर्नृ॒पाय्य॑म् । वि॒षु॒द्रुहे॑व य॒ज्ञमू॑हथुर्गि॒रा ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

asmabhyaṁ su vṛṣaṇvasū yātaṁ vartir nṛpāyyam | viṣudruheva yajñam ūhathur girā ||

पद पाठ

अ॒स्मभ्य॑म् । सु । वृ॒ष॒ण्व॒सू॒ इति॑ वृषण्ऽवसू । या॒तम् । व॒र्तिः । नृ॒ऽपाय्य॑म् । वि॒षु॒द्रुहा॑ऽइव । य॒ज्ञम् । ऊ॒ह॒थुः॒ । गि॒रा ॥ ८.२६.१५

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:26» मन्त्र:15 | अष्टक:6» अध्याय:2» वर्ग:28» मन्त्र:5 | मण्डल:8» अनुवाक:4» मन्त्र:15


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शिव शंकर शर्मा

पुनः वही विषय आ रहा है।

पदार्थान्वयभाषाः - (वृषण्वसू) हे धनवर्षिता अश्विद्वय ! (अस्मभ्यम्) हमारे कल्याण के लिये आप सब (सुयातम्) अच्छे प्रकार आवें और (नृपाय्यम्) मनुष्यों के रक्षणीय और आश्रय (वर्तिः) जो मेरे गृह और यज्ञशाला हैं, वहाँ आकर विराजमान होवें (विषुद्रुहा+इव) जैसे बाण की सहायता से वीर रक्षा करते हैं, वैसे ही (गिरा) स्तुतियों से प्रसन्न होकर (यज्ञम्) प्रजाओं के शुभकर्म की (उहथुः) रक्षा और भार उठावें ॥१५॥
भावार्थभाषाः - राजवर्ग को उचित है कि प्रजाओं के कल्याणार्थ सदा चेष्टा करें, उनके साधनों में आलस्य न करें, क्योंकि राजवर्ग प्रजाओं की रक्षा के लिये ही नियुक्त किये गये हैं ॥१५॥
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शिव शंकर शर्मा

पुनस्तदेवानुवर्तते।

पदार्थान्वयभाषाः - हे वृषण्वसू=हे धनवर्षितारौ ! अस्मभ्यम्। सुयातम्। नृपाय्यम्=नृभिर्नेतृभिः पालनीयम्। वर्तिर्गृहम्। सुयातम्। पुनः। विषुद्रुहा+इव=बाणेन इव। यथा वीरो बाणेन सहायेन रक्षति तथैव। गिरा=स्तुत्या। यज्ञम्=कर्म प्रजानाम्। युवाम्। ऊहथुः=वहतम् ॥१५॥